कुछ कविताएँ, कुछ पेंटिग्स् और तीन दोस्त बस यही है ह्रदय-स्पर्श।दोस्ती जब पक जाए और रिश्तों की जड़ें पुख़्ता हो चुकीं हों और जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ लगभग पूरे होने की कगार पर हों तब मन और मस्तिष्क के आनंद कुछ नया उपजाने की तलाश में लग जाते हैं।मन का आनंद नये रूपों और नये रंगों में ढलने लगता है।बस ह्रदय-स्पर्श भी अनूप, आशीष और डॉ पूर्णिमा के ऐसे ही आनंद से उपजी है और यह किताब आप सभी को भी इसी आनंद से परिचित कराने का प्रयास है।अनूप जहां कविताओं के माध्यम से मन के विभिन्न भावों को शब्दों में संजोने का प्रयास करते हैं, वहीं आशीष केवल दो मौलिक रंगों श्वेत एवं श्याम से चित्रों को बोलने पर मजबूर कर देते हैं। इसमें तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कोण डॉ पूर्णिमा का है, जो पारखी हैं।वो अनूप और आशीष जैसे कंकड़ पत्थरों को चमका कर मनमोहक गहनों में सजा कर क़ीमती बना देतीं हैं।अब पाठकों को तय करना है कि ये तिकड़ी कितनी कामयाब हुई।असली आकलन सुधी पाठकों और गुणी मित्रों को ही करना है।क्योंकि पारखी तो आप सब भी हैं।