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Krishnashtak

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978-93-92014-01-7
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कृष्ण को ईश्वर कहें, महामानव कहें या अवतार कहें, वे भारत ही नहीं विश्व के जन मानस में भी अपनी पैठ बनाए हुए हैं।उनका चरित्र अतीव विशाल है। बाल कृष्ण, किशोर कृष्ण, प्रेमी कृष्ण, योगी कृष्ण, योद्धा कृष्ण, मित्र कृष्ण जिस रूप में जो चाहे देख और चाह सकता है।कृष्ण सर्वत्र उपलब्ध और सर्व सुलभ हैं। मीरा, सूर, रसखान, वेद व्यास जिसकी जैसी भावना वैसे कृष्ण।
कृष्ण गीता में भी हैं और महाभारत में भी।उनके व्यक्तित्व को परिभाषित करने के प्रयास सदैव कम पड़ जाते हैं।
कृष्णाष्टक अष्ट अध्यायों में समाहित विभिन्न वय के कवियों चित्रकारों का कृष्ण भक्ति और कृष्ण के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करने का अभिनव प्रयास है।कवि और संपादक अनूप पाण्डेय और डॉ पूर्णिमा की टीम ने अपने सहयोगी कवि मित्रों की विलक्षण योग्यताओं का सटीक उपयोग किया है। डॉ अपर्णा प्रधान, डॉ रेनु मिश्रा एवं रजनी शालीन चोपड़ा की लगातार पैनी नज़रों के तले यह कृष्ण प्रेम का बीज कृष्णाष्टक नाम के सुखकर वृक्ष के रूप में पल्लवित हुआ है।डॉ अपर्णा की पेंटिंग्स कवर पेज पर और सेक्शन सेपरेटर्स में काव्य संग्रह को अनूठा बनाती हैं।
इसे धरातल देने का कार्य राइवर्स प्रेस के कल्पनाशील संचालक अफान येश्वी के सक्षम प्रयासों से संभव हुआ है।
यह सफल टीम और कृष्णाष्टक में संकलित काव्य एवं चित्र रचना कर्ता बधाई के पात्र हैं

Weight 210 g
Dimensions 21 × 14.5 × 21 cm